नागपुर : अच्छा पुत्र बनाने के पहले अच्छे पिता, अच्छा इंसान बने यह उदबोधन वात्सल्य सिंधु दिगंबर जैनाचार्य गुप्तिनंदीजी गुरुदेव ने विश्व शांति अमृत ऋषभोत्सव के अंतर्गत श्री. धर्मराजश्री तपोभूमि दिगंबर जैन ट्रस्ट और धर्मतीर्थ विकास समिति द्वारा आयोजित ऑनलाइन धर्मसभा में दिया.
गुरुदेव ने कहा पुत्र भी अच्छे होते हैं. पिता अपने दर्द को किसी को नहीं बताता. पुत्र संस्कारी तब बनेगा उसे बचपन में अच्छे संस्कार मिलेंगे. अच्छे पिता अच्छे संस्कार होंगे और पुत्र पर अच्छे संस्कार होंगे. कोरोना महामारी के काल में प्रार्थना ही सर्वश्रेष्ठ हैं. कर सकते हैं तो प्रार्थना, बचा सकते हैं तो प्रार्थना ही बचायेगी. वैज्ञानिक भी कहते हैं जो काम दुवाओं से हो सकता वह दवाओं से नहीं हो सकता.
प्रार्थना के बल पर दुखों का निवारण होता हैं- आचार्यश्री सुरत्नसागरजी
बालयोगी आचार्यश्री सुरत्नसागरजी गुरुदेव ने कहा सच्चे मन से हम समूह के साथ प्रार्थना करते हैं तो निश्चित ही हमारी प्रार्थना परमात्मा तक पहुंचती हैं. हमे अपने जीवन को, परिवार को, अपने समाज को, अपने देश, अपने राष्ट्र को मंगलमय करना हैं. एक ऐसा सूत्र हैं हम एकता सूत्र में बंधकर अपने आराध्य की प्रार्थना करे, अपने आराध्य की पूजा करे, अपने गुरुओं की वंदना करे. हमारे देव, हमारे शास्त्र, हमारे गुरु, हमारा धर्म मंगलमय हैं. हम मंगल का पाठ करते हैं तो मंगलस्वरूप होता हैं, जो मंगल होने की प्रेरणा दे रहे हैं. ऐसे गुरुओं के सानिध्य में बैठकर हम अपनी आत्मा का कल्याण करे. हमें डरना नहीं हैं, हमें भयभीत होना नहीं हैं उस व्यवस्था के साथ मिलकर उसपर विजय प्राप्त करना हैं. जिसे विजय प्राप्त होता हैं उसे अनंत सुख का लाभ प्राप्त होता हैं. जिसने कोरोना को जीत लिया और घर वापस आ गए इसका कारण हमारा संघर्ष था. कर्म आते हैं और जाते हैं.
कर्मो का आना जाना शुरू रहता हैं. जीवन में कितने भी संकट आये हमें जिनेन्द्र भगवान की आराधना करना चाहिए.. जो काम वैक्सीन नहीं कर सकती वह दुवाएं करती हैं. जितना हो सके दुवाओं को फैलाये. जितना हो सके अपनी प्रार्थना को जागृत करे. संकट के दिनों में कोई काम नहीं आता. जब जीवन में असाता कर्म का उदय आता हैं, अशुभ कर्मो का उदय आता हैं हमारे परमात्मा, हमारी प्रार्थना में भाव जुड़ते हैं,प्रार्थना ही निश्चित ही स्वीकार की जाती हैं. हमारी प्रार्थना प्रबल होनी चाहिए, एकाग्र होनी चाहिए. एकाग्र नहीं होती तब तक शुद्धि नहीं होती. मंत्र, जाप्यानुष्ठान प्रार्थना हैं. यह संसार दुख से भरा हुआ हैं. दुखों का निवारण के लिए सामर्थ्यवान हैं तो प्रार्थना हैं. प्रार्थना के बल पर दुखों का निवारण होता हैं. संत करूणा के मूर्ति होते हैं. निर्ग्रन्थ साधक आत्म साधना के साथ साथ, साधना के लक्ष्य रखते हैं. उपकार होता हैं तो निश्चित प्रार्थना के रूप में होता हैं. हम सभी प्रार्थना के दौर में जी रहे हैं आज हिंदुस्तान में हर व्यक्ति अपने-अपने हिसाब से प्रार्थना कर रहा हैं. इस संकट का मुकाबला हंस कर, मुस्कुरा कर करो और गुरुओं के सानिध्य में करो. एक प्रार्थना श्रावक करते हैं और एक प्रार्थना संत करते हैं. आचार्यश्री गुप्तिनंदीजी गुरुदेव घर बैठे अनेक संतों का परिचय करा रहे हैं. णमोकार महामंत्र हो, भक्तामर हो, महामृत्युंजय मंत्र हो, छोटा हो या बड़ा हो संत के श्रीमुख से, संत के सानिध्य में सुनते हो प्रभावी होता हैं. गुरु पाषाण प्रतिष्ठित करते समय मंत्र देते हैं, मंत्रों का अंकन्यास करना, बीजों का अंकन्यास करते हैं, सूरी मंत्र देते हैं वही पाषाण हमारे लिए भगवान बन जाता हैं, पूज्यता के श्रेणी में आता हैं. गुरु मुख से सुना हुआ मंत्र, बीज मंत्र हमारे सारे दुख दूर करता हैं, हमारे मुक्ति को बनाता हैं.
गुरु शिष्य को भगवान बनाते हैं. गुरु का उपकार हमारे उपर बहुत होता हैं, गुरु के उपकार हम कभी नहीं चुका सकते. समस्त गुरुओं का उद्देश्य श्रावकों को प्रार्थना से जोड़ना, पूजा पाठ से जोड़ना हैं, अशुभ कार्यो से बचाना गुरुओं का लक्ष्य होता हैं. हम अपने साथ साथ अपने निर्ग्रन्थ गुरुओं की रक्षा करे. जिनशासन में श्रावक और श्रमण एक रथ के दो पहिये हैं. परमात्मा के पास देर हैं पर अंधेर नहीं हैं. धर्मसभा का संचालन विनयगुप्त मुनिराज ने किया. मंगलवार 18 मई को सुबह 7:20 बजे शांतिधारा, सुबह 9 बजे भारत गौरव राष्ट्रसंत शांतिदूत आचार्यश्री पुलकसागरजी गुरुदेव का उदबोधन होगा. शाम 7:30 बजे से परमानंद यात्रा, चालीसा, भक्तामर पाठ, महाशांतिधारा का उच्चारण एवं रहस्योद्घाटन, 48 ऋद्धि-विद्या-सिद्धि, मंत्रानुष्ठान, महामृत्युंजय जाप, आरती होगा यह जानकारी धर्मतीर्थ विकास समिति के प्रवक्ता नितिन नखाते ने दी हैं.
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