जैन धर्म को समझता हैं वह धर्म को समझता हैं- आचार्यश्री गुप्तिनंदीजी - Expert News
Nagpur

जैन धर्म को समझता हैं वह धर्म को समझता हैं- आचार्यश्री गुप्तिनंदीजी

जैन धर्म को समझता हैं वह धर्म को समझता हैं- आचार्यश्री गुप्तिनंदीजी
Written by Expert News

नागपुर : जैन धर्म को समझता वह धर्म को समझता हैं. प्रत्येक व्यक्ति में आत्मविश्वास बना रहे. आज कोरोना से नहीं, भय से लोग मर रहे हैं. सभी यदि भय को बाहर कर से कोरोना से हम लड़ाई जीत जायेंगे. यह उदबोधन वात्सल्य सिंधु दिगंबर जैनाचार्य गुप्तिनंदीजी गुरुदेव ने विश्व शांति अमृत ऋषभोत्सव के अंतर्गत श्री. धर्मराजश्री तपोभूमि दिगंबर जैन ट्रस्ट और धर्मतीर्थ विकास समिति द्वारा आयोजित ऑनलाइन धर्मसभा में दिया.

जीवन में शांति पाने का लक्ष्य अवश्य रखें- गणिनी आर्यिका सुप्रकाशमती माताजी
गणिनी आर्यिका सुप्रकाशमती माताजी ने धर्मसभा में कहा प्रातःकाल की बेला की ऊर्जा सकारात्मक होती हैं और इन्सान के शरीर में ऊर्जा भर देता हैं. संतों के माध्यम से धर्म की प्रभावना और तीर्थों का निर्माण होता हैं. धर्म को जीवंत रखने के लिए आनेवाले काल के लिए संकेत करेंगे. प्रकृति के गोद में हम आये हैं हमारा शरीर प्राकृतिक हैं. वह व्यक्ति अपने जीवन का लक्ष्य बना के जीता हैं. आत्म जीवन को जीते हैं वह साक्षात्कार का जीवन जीते हैं. संतगण आत्म साक्षात्कार के जीवन का लक्ष्य बनाकर जीते हैं. जिसने लक्ष्य को प्राप्त किया हैं वह वह मंजिल को प्राप्त करेगा. हर व्यक्ति आत्म साक्षात्कार का लक्ष्य नहीं बन पाता, हर व्यक्ति शांति का लक्ष्य अपने जीवन में बनाये. हमे जीवन शांति में पाना हैं तो नकारात्मक बिंदुओं पर ध्यान देना होगा. नकारात्मकता त्यागे बिना हम जागेंगे कैसे. शांति पाने के लक्ष्य को बनाना हैं तो अशांति के बिंदुओं को, अशांति के सूत्रों को जानना होगा. हमारी मानसिक शांति, जीवन की शांति चुरा ली गई हैं. हमारे शांति को चुरानेवाला कौन हैं. हमारे शांति को चुरानेवाला हमारा अशांत मन हैं.

मन की लोलुपताए, तृष्णाये चाहे जागृत होती हैं यह हमारे अशांति को पैदा करता हैं. हमारा अपना स्वयं का मन शांति को चुरा लेना हैं. किसी भी वस्तु को पाने की लोलुपता इन्सान को बर्बाद कर देती हैं. धन की लोलुपता, स्वार्थ की लोलुपता, ऐश्वर्य की, प्रभुत्व की इतने सारे कारण हैं हमारा मन अशांत होता हैं और शांति हमेशा हमेशा के लिए चुरा ली जाती हैं. किसी का मन अशांत हैं सोते ही हैं, नींद आती हैं. मन चंचल हुआ तो देह चंचल हुआ, मन और देह चंचल हुआ तो मन अशांत हो जाता हैं. मन अशांति को भंग कर देता हैं. हम अपनी लोलुपता पर स्वयं निमंत्रण रखें.

हमारे मन पर नियंत्रण रखने के लिए धर्म साधन और सिद्धांत और आगम का अध्ययन हो जाये संसार के वस्तु को पाने की इच्छा करते हैं, मन पर नियंत्रण करें, मन पर अंकुश करें क्योकि मन अपने पास हैं, उसको पाकर संतुष्ट नहीं होता. जो हमारे पास नहीं हैं उसको पाने की इच्छा करता है, इसके पीछे भागता हैं. दौड़ लगाना हैं, उसके पीछे भागो मत संतुष्ट रहे. धन के पीछे भागनेवाला इन्सान सफलता नहीं पाता और मंजिल नहीं प्राप्त कर सकता हैं. इन्सान की अनंत इच्छाएं हैं, वह वह भी पूरी नहीं हो पाती हैं.

हर व्यक्ति अपने घर में रहे, सीमित रहे, सामाजिक दूरी का पालन करें. आत्म साक्षात्कार का लक्ष्य प्राप्त नहीं किया तो कोई बात नहीं, जीवन में शांति पाने का लक्ष्य अवश्य प्राप्त करें. जैन सिद्धांत यह सिखाता हैं अपने जीवन में शांति को प्राप्त करें. मन में संतोष हैं तो शांति ही बहार बहार हैं. हर आदमी आत्म साक्षात्कार लक्ष्य को लेकर जिये. धर्मसभा का संचालन गणिनी आर्यिका आस्थाश्री माताजी ने किया. धर्मतीर्थ विकास समिति के प्रवक्ता नितिन नखाते ने बताया रविवार 9 मई को 7 बजे से शांतिधारा होगी. सुबह 9 बजे वैज्ञानिक धर्माचार्य कनकनंदीजी गुरुदेव का उदबोधन होगा.



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